(अनूप नारायण सिंह)
ईश्वर के प्रार्थना की शक्ति का महत्व, ज़रूरतमंदों की निश्छल भाव से सहायता और ईश्वर को हृदय से आभार को सभी धर्मों के अलावा विज्ञान ने भी स्वीकार किया है। इससे इंसान के बेहतर जीवन का मार्ग प्रशस्त होता है। ज़िंदगी के सफ़र में कितने लोग कहते है कि तेरे दर्द से मुझे भी तकलीफ होती हैं। ईमानदारी से समीक्षा करने पर अपवाद दृष्टिगोचर होता है। संकट में अंततः ईश्वर प्रार्थना, आभार एवं सहायता भाव मन मस्तिष्क और जुबां पर आती है। ईश्वर की प्रार्थना हम सभी जब संकट या दलदल में फँसे रहते है तो निश्चित रूप से करते हैं।
कभी-कभी सोचता हूँ कि जिंदगी हमें चलाती है या हम उसे चलाते है। क्या जिंदगी में बस वही सब होना चाहिए जो केवल और केवल हम चाहते है। क्या जिंदगी में सब कुछ खुशी ही होती है या दुःख का मतलब भी समझ में आना चाहिए।ज़िंदगी में ज़रूरतमंद की सहायता भाव क्यों शिथिल भाव में रहता है।हमें कभी-कभार अंदाजा भी नही लग पाता कि जिंदगी को हमसे क्या चाहिए और हम उसे क्या दे रहे हैं।
उक्त कथन है बिहार पुलिस एसोसिएशन के अध्यक्ष मृत्युंजय कुमार सिंह का जिन्होंने फुर्सत के पलों में इस पर मनन किया है। उनका कहना है कि हमारे कुछ फैसले, उन नतीजों तक लेकर जाते हैं जिसकी कल्पना हमने नहीं की थी। फिर दोष किस पर डालें, जिंदगी पर या अपने कर्म पर या जिसने ज़िंदगी दिया उस पर। जिंदगी के सफर में हम कुछ राहें चुनते हैं, फिर मंजिल की खोज में आगे बढते हैं। पर मंजिल का कोई अता-पता नही होता तो राहें गलत थी या हमारा फैसला इस पर कभी हम नही सोचते। जो हमें ईश्वर दिए है उससे ख़ुश होना चाहिए। उसके लिए ईश्वर का धन्यवाद करना चाहिए। पर धन्यवाद करते है तो कब करते है कभी ध्यान दे कर सोचें। सृष्टि के हर कालखंड में ईश्वर अवतार, ऋषि मुनि, नर, दानव ईश्वर की प्रार्थना पूजा करते थे और उनसे वरदान प्राप्त कर कई शक्तियाँ प्राप्त करते थे। प्रभु श्रीराम किसी भी शुभ कार्य को करने के पहले ईश्वर की पूजा आराधना करते थे। ज़रूरतमंद को सहायता करते थे और साथ ही धन्यवाद भी व्यक्त करते थे। इंसान चार शब्दों की उच्चतम प्रार्थना के कितना क़रीब होता इस पर ज़रा गम्भीरता से सोचिए। एक कहानी बताता हूं।
एक जादूगर जो मृत्यु के करीब था। मृत्यु से पहले अपने बेटे को चाँदी के सिक्कों से भरा थैला देता है और बताता है की "जब भी इस थैले से चाँदी के सिक्के खत्म हो जाएँ तो मैं तुम्हें एक प्रार्थना बताता हूँ, उसे दोहराने से चाँदी के सिक्के फिर से भरने लग जाएँगे। उसने बेटे के कान में चार शब्दों की प्रार्थना कही और वह मर गया। अब बेटा चाँदी के सिक्कों से भरा थैला पाकर आनंदित हो उठा और उसे खर्च करने में लग गया। वह थैला इतना बड़ा था की उसे खर्च करने में कई साल बीत गए। इस बीच वह प्रार्थना भूल गया। जब थैला खत्म होने को आया तब उसे याद आया कि अरे! वह चार शब्दों की प्रार्थना क्या थी, उसने बहुत याद किया परन्तु उसे याद ही नहीं आया। अब वह लोगों से पूँछने लगा। पहले पड़ोसी से पूछता है की "ऐसी कोई प्रार्थना तुम जानते हो क्या, जिसमें चार शब्द हैं। पड़ोसी ने कहा हाँ एक चार शब्दों की प्रार्थना मुझे मालूम है, ईश्वर मेरी मदद करो। उसने सुना और उसे लगा की ये वे शब्द नहीं थे, कुछ अलग थे। कुछ सुना होता तो हमें जाना-पहचाना सा लगता। फिर भी उसने वह शब्द बहुत बार दोहराए, लेकिन चाँदी के सिक्के नहीं बढ़े तो वह बहुत दुःखी हुआ। फिर एक फादर से मिला तो फ़ादर बताया की "ईश्वर तुम महान हो" ये चार शब्दों की प्रार्थना हो सकती है, मगर इसके दोहराने से भी थैला नहीं भरा। फिर वह एक नेता से मिला और पूछा तो उसने कहा “ईश्वर को वोट दो“ होगा परन्तु यह प्रार्थना भी कारगर साबित नहीं हुई। वह बहुत उदास और चिंतित हो गया। उसने सभी से मिलकर देखा मगर उसे वह प्रार्थना नहीं मिली, जो पिताजी ने बताई थी। वह थकहार कर उदास होकर घर में बैठा हुआ था तभी एक भिखारी उसके दरवाजे पर आया। उसने कहा, सुबह से कुछ नहीं खाया, खाने के लिए कुछ हो तो दो। उस लड़के ने बचा हुआ खाना भिखारी को दे दिया। उस भिखारी ने खाना खाकर बर्तन वापस लौटाया और ईश्वर से प्रार्थना की “हे ईश्वर ! तुम्हारा धन्यवाद“ अचानक वह चौंक पड़ा और चिल्लाया कि अरे यही तो वह चार शब्द थे जो मेरे पिता जी बताए थे। उसने वे शब्द दोहराने शुरू किए “हे ईश्वर तुम्हारा धन्यवाद” और उसके सिक्के बढ़ते गए, बढ़ते गए, इस तरह उसका पूरा थैला भर गया। इससे समझें की जब उसने निश्चल भाव से किसी की मदद की तब उसे वह मंत्र फिर से मिल गया। यही उच्च प्रार्थना जीवन मार्ग है, क्योंकि जिस चीज के प्रति हम धन्यवाद देते हैं, वह चीज बढ़ती है। अगर पैसे के लिए धन्यवाद देते हैं तो पैसा बढ़ता है, प्रेम के लिए धन्यवाद देते हैं तो प्रेम बढ़ता है। बहुत अच्छे दिन आएंगे या नहीं यह तो मुझे नहीं पता पर जो नियमित रोज ईश्वर की प्रार्थना करेगा किसी ज़रूरतमंद की सहायता करेगा उसके बुरे दिन कभी नहीं आएंगे। बिना किसी प्रयास से यह ज्ञान हमारे जीवन में उतर रहा है वर्ना ऐसे अनेक लोग हैं जो झूठी मान्यताओं में जीते हैं और उन्हीं मान्यताओं में ही मरते हैं। मरते वक्त भी उन्हें सत्य का पता नहीं चलता। ऊपर दी गई कहानी से समझें की "हे ईश्वर ! तुम्हारा धन्यवाद" ये चार शब्द, शब्द नहीं प्रार्थना की शक्ति हैं।अगर यह चार शब्द दोहराना किसी के लिए कठिन है तो इसे तीन शब्दों में कह सकते हैं, ईश्वर तुम्हार धन्यवाद। ये तीन शब्द भी ज्यादा लग रहे हों तो दो शब्द कहें, "ईश्वर धन्यवाद !" और दो शब्द भी ज्यादा लग रहे हों तो सिर्फ एक ही शब्द कह सकते हैं, "धन्यवाद”। आइए, हम सब मिलकर एक साथ धन्यवाद दें उस ईश्वर को, जिसने हमें मनुष्य जन्म दिया। इंसान जीवन में कभी भी कोई शुभ कार्य या सफलता के लिए किसी मंज़िल की तलाश में निकलता है तो निश्चित रूप से ईश्वर की प्रार्थना करता है। साथ ही सफलता मिलने पर धन्यवाद व्यक्त भी करता है। वक़्त से हारा या जीता नहीं जाता केवल सीखा जाता है फिर सीख कर ज़िंदगी को फिर जीता जाता है। हे इंसान सत्य निष्ठा से स्वयं से कभी पूछो कि सुबह से शाम, दिन से रात तक ईश्वर प्रार्थना में तुम्हारा दिल कितनी बार धड़कता है। किसी ज़रूरतमंद को निस्वार्थ भाव से कितने लोगों की सहायता करते हैं। हे इंसान जिंदगी के मायने दूसरो से मत सीखो क्योंकि जिंदगी आपकी है और ईश्वर की प्रार्थना उपरांत आभार व्यक्त कर मायने भी आपको ख़ुद तय करना है। ईश्वर भक्ति, ज़रूरतमंद की सहायता एवं उनका धन्यवाद करके बेहतर ज़िंदगी का अजेय दुर्ग बना लीजिए।