किस्सा-कहानी का हिस्सा बन गया राजा विराट का किला June 21, 2020 • गाथा ब्यूरो (गाथा ब्यूरो, शिवाकान्त पाण्डेय) प्रतापगढ़-पट्टी। महाभारत में जिस राजा विराट के प्रसंग का उल्लेख खंड 17 में मिलता है उनका ऐतिहासिक किला पट्टी तहसील इलाके के बारडीह गांव में टीले के रूप में आज भी मौजूद है लेकिन, बेहद जर्जर और अवशेष के रूप में, प्रशासनिक व पुरातत्व विभाग की उपेक्षा का शिकार यह स्थल अपनी पहचान खो चुका है। राजा विराट का किला अब किस्सा कहानियों का हिस्सा बन चुका है, हालत यह हो गई है कि इस ऐतिहासिक जगह तक जाने के लिए कोई रास्ता तक नहीं है। प्रतापगढ़ जिले की तहसील पट्टी के इतिहास पर जब नजर डालें तो राज विराट का नाम सबसे पहले उभरकर सामने आता है, कहा जाता है कि राजा विराट के नाम से विराट नगर महाभारत काल का एक प्रसिद्ध जनपद था, यहां विराट का राज्य था, उप्लव नगर इसकी राजधानी थी, जब पांडव अज्ञातवास कर रहे थे उस समय अर्जुन ने वृहन्नला नाम धारण कर अपने सभी भाइयों संग राज विराट के यहां नौकरी की थी, वृहन्नला ने राजा विराट की पुत्री उत्तरा को नृत्य व संगीत की शिक्षा दी थी। महाभारत में राजा विराट के साले कीचक के वध का भी दृष्टांत मिलता है जिसकी पुष्टि पुरातत्व विभाग ने की है। पट्टी इलाके के महदहां व दमदमा इलाके में पुरातत्व विभाग को महाभारत कालीन नरकंकाल के अवशेष यहां खुदाई के दौरान मिले थे, गांव में आज भी पुरातत्व विभाग द्वारा बोर्ड व खुदाई स्थल को सुरक्षित रखने का प्रमाण मौजूद है बावजूद इस ऐतिहासिक स्थल की देखभाल या उसे सहेजने अथवा सुरक्षित रखने का कार्य न तो प्रशासन कर रहा है न ही पुरातत्व विभाग ही इस दिशा में दिलचस्पी दिखा रहा है। किले के बगल छह बीघा जमीन है अभिशप्त राजा विराट के किले के बगल पांच से छह बीघा अभिशप्त जमीन पड़ी है जिस पर आज भी खेती नहीं होती, कहावत है कि इस अभिशप्त जमीन को कोई भी अपने कब्जे में लेने का प्रयास करता है तो उनके साथ कुछ न कुछ अहित हो जाता है लिहाजा आज भी वह जमीन वहां वैसे ही पड़ी हुई है, इस जमीन के आसपास कई तालाब भी हैं। जाने के लिए नहीं है रास्ता राजा विराट के इस ऐतिहासिक किले पर जाने का कोई रास्ता नहीं है इस टीले के आसपास झाड़-झंखाड़ उगे हुए हैं, बरसात के मौसम में ज्यादातर सांप, बिच्छु और अन्य विषैले जानवर ही नजर आते हैं। सदियों तक तो यहां आने जाने का कोई साहस ही नहीं करता था लेकिन अब तो लोगों ने इस टीले को खेती के काबिल बना कर उस पर खेती भी शुरू कर दी है। खाली पड़ी जमीन पर बनाई यज्ञशाला, कुछ दिनों तक ही रह सके राजा विराट के किले के करीब ही एक खाली स्थान पर वाराणसी के जूना अखाड़े के नागा साधू सदस्य महंथ रामेश्वर पुरी ने यज्ञशाला का निर्माण करने के साथ शतचंडी यज्ञ समपन्न कराया और वहां एक शिवालय की स्थापना कर आश्रम भी बना लिया था, इस आश्रम में आसपास के गांव के ग्रामीण भजन कीर्तन व भंडारे में शामिल होने आया करते थे, हालांकि कुछ दिन बीतने के बाद ही बाबाजी भी अचानक कुटिया छोड़ चले गए। इस किले के करीब ही एक स्वयंसेवी संस्था विराट धाम नाम से एक मंदिर श्रृखंला भी तैयार कर रही है, जो देखने में अद्भुत नजर आती है। हालांकि पुरातत्व विभाग की अनदेखी, और पर्यटन विभाग की उदासीनता से आज भी राजा विराट का किला मिट्टी के ढेर में ही तब्दील नजर आ रहा है, क्षेत्रीय विधायक नेता व जनपद में दो क्षेत्रीय राज्य मंत्री होने के बावजूद भी महाभारत काल के इतिहास के इस पौराणिक स्थल का विकास न हो पाना कहीं ना कहीं संदिग्ध नजर आता है।