मन की चंचलता

▪ बिहार पुलिस एसोसिएशन के अध्यक्ष मृत्युंजय कुमार सिंह की कलम से



(संकलन कर्ता-अनूप नारायण सिंह)


जीवन का सबसे कठिन दौर वह नहीं होता है जब कोई आपको समझता नहीं है, बल्कि वह होता है जब आप अपने चंचल मन को बस में नहीं रखते हैं। दुनिया में हर इंसान का मन क्रियाशील और चंचल होता है।


हम सभी जब भी कहीं बैठे होते हैं तब भी हमारा मन आराम नही करता वो भूत, वर्तमान और भविष्य में डुबकी लगाकर आनंद विभोर होता रहता है। ये हर इंसान में होता है चाहे वह अमीर हो या ग़रीब हो, नेता हो या जनता हो, किसान हो या व्यापारी हो, चोर हो या सिपाही हो, यानी धरती पर हर इंसान के अंदर मौजूद मन विचरण करता रहता है। कभी सुख तो कभी दुःख का एहसास कराते रहता है। कभी वर्तमान का तो कभी भविष्य की योजनाओं की रूपरेखा का ताना बाना बुनते रहता है।


मन दुनिया में सबसे तेज़ दौड़ लगाता है। विज्ञान इसको चुनौती नहीं दे सकता है। सेकेंडों में मन कई बार सूर्य की परिक्रमा कर सकता है। दुनिया के अनेको देशों की यात्रा कर लेता है। सुखद पलों की आनन्दमय अनुभूति दोहराते रहता है, साथ ही दुखद और बुरे का भी एहसास कराते रहता है।


हर इंसान के अंदर मन की चंचलता जीवन से जुड़ी अतीत, वर्तमान के साथ भविष्य के सम्भव और असम्भव की एक कहानी है। किसी ने एक महात्मा से पूछा इस दुनिया में आपका अपना कौन है..? ज्ञानी महात्मा ने हंसकर कहा 'मन', अगर वो सही है तो सभी अपने हैं वरना कोई अपना नहीं है। मन ही अपना और गैरों की समीक्षा करते रहता है। मन संतुष्ट और असंतुष्ट में सफ़र करता रहता है। मन को एक पूर्ति हुई तो मन में दस की इच्छा उत्पन्न होती है। दस हुआ तो सहस्त्रों की इच्छा है, सहस्त्र हुए तो आगे भी इच्छाओं का अंबार खड़ा है।


मन में हमेशा इच्छाओं, कल्पनाओं की दुनिया की अभिलाषाएं जन्म लेती रहती हैं। मन के अंदर इच्छाओं के तपिश का असर होता है। मन में कांटों के बीच हर तरह के फूल खिलते रहते हैं। एक कहानी आपको बताता हूं, एक आदमी ने एक भूत पकड़ लिया और उसे बेचने शहर गया। संयोगवश उसकी मुलाकात एक सेठ से हुई। सेठ ने उससे पूछा भाई, यह क्या है..? उसने जवाब दिया कि, यह एक भूत है इसमें अपार बल है कितना भी कठिन कार्य क्यों न हो, यह एक पल में निपटा देता है, यह कई वर्षों का काम मिनटों में कर सकता है। सेठ के मन में भूत की प्रशंसा सुनकर लालच आ गया और उसकी कीमत पूछी। उस आदमी ने कहा कीमत बस पाँच सौ रुपए है। कीमत सुनकर सेठ ने हैरानी से पूछा बस पाँच सौ रुपए..? उस आदमी ने कहा सेठ जी जहाँ इसके असंख्य गुण हैं वहाँ एक दोष भी है। अगर इसे काम न मिले तो मालिक को खाने दौड़ता है। सेठ ने मन ही मन में विचार किया कि मेरे तो सैकड़ों व्यवसाय हैं विलायत तक कारोबार है, यह भूत मर जाएगा पर काम खत्म न होगा, यह सोचकर उसने भूत खरीद लिया।


भूत तो भूत ही था, उसने अपना चेहरा फैलाया बोला काम! काम! काम! काम। सेठ भी तैयार ही था, तुरंत दस काम बता दिए, पर भूत उसकी सोच से कहीं अधिक तेज था। इधर मुंह से काम निकलता, उधर पूरा होता। अब सेठ घबरा गया, संयोग से एक संत वहाँ आए, सेठ ने विनयपूर्वक उन्हें भूत की पूरी कहानी बताई, संत ने हँस कर कहा अब जरा भी चिंता मत करो एक काम करो, उस भूत से कहो कि एक लम्बा बाँस लाकर आपके आँगन में गाड़ दे, बस जब काम हो तो काम करवा लो, और कोई काम न हो, तो उसे कहो कि वह बाँस पर चढ़ा और उतरा करे, तब आपके काम भी हो जाएँगे और आपको कोई परेशानी भी न रहेगी। सेठ ने ऐसा ही किया और सुख से रहने लगा।


यह मन ही वह भूत है, यह सदा कुछ न कुछ करता रहता है। एक पल भी खाली बिठाना चाहो तो खाने को दौड़ता है, श्वास ही बाँस है, श्वास पर नामजप का अभ्यास ही बाँस पर चढ़ना उतरना है, आप भी ऐसा ही करें, जब आवश्यकता हो मन से काम ले लें, जब काम न रहे तो श्वास में नाम जपने लगो तब आप भी सुख से रहने लगेंगे।


एक व्यक्ति के मन में प्रश्न उत्पन्न होता है तो वो बुद्ध से पूछता है सवेरा तो रोज ही होता है परन्तु शुभ प्रभात क्या होता है, बुद्ध ने बहुत ही सुन्दर जबाब दिया जीवन में जिस दिन आप अपने अंदर की बुराईयो को समाप्त कर मन में उच्च विचार तथा अपने मन से आत्मा को शुद्ध करके दिन की शुरुआत करते हो वही शुभ प्रभात होता है। उसी तरह जीवन का जन्म से शुभ प्रभात होता है। जन्म के साथ ही जब इंसान छोटी उम्र में होता है उस वक़्त से ही मन अपना कार्य प्रारम्भ कर सब कुछ पाने के अभिलाषाएँ मस्तिष्क में उत्पन्न करने लगता है। इंसान के उम्र के साथ मन भी साथ साथ सफ़र करने लगता है। मन में क्रियाएँ भी जन्म लेती रहती है जो इंसान के जीवन यात्रा में सम्भव नही होता है। मन में वैसी कल्पनाओं की अभिलाषा उत्पन्न होती है जो अभी दुनिया में कही दृष्टिगोचर नहीं होती है। वो इंसान के शरीर में पीड़ा दायक होती है।


समाज में हर कोई हर पल नई सोच मन में उत्पन्न करते रहते हैं। जो हितकारी भी होता है और हानिकारक भी होता है। देश समाज के व्यक्तियों में कोई मुखिया है तो उसके मन में विधायक बनने की अभिलाषा, कोई विधायक है तो मंत्री की अभिलाषा, कोई मंत्री है तो मुख्यमंत्री बनने की अभिलाषा, कोई मुख्यमंत्री है तो प्रधानमंत्री की अभिलाषा, प्रधानमंत्री है तो दुनिया का शक्तिशाली नेता बनने की अभिलाषा मन में विचरण करती रहती है। मन ही सुख दुःख का मूल कारण बन के हर इंसान में मौजूद है। उस पर नियंत्रण करना ही सफल और सुखद जीवन का मूल मंत्र है।


अनेकों ऋषि, महात्मा मन को अपने बस में कर के जीवन में ईश्वर नाम का जाप तपस्या कर के समाज को उपदेश देते रहते हैं। कोई इंसान संकल्प कर के अपने मन को बस में करके जीवन यात्रा पर गतिमान रहेगा तो वो इंसान दुनिया का सुखी इंसान होगा। इंसान का मन यदि संतुलित रहे तो वह हर पर विजय पा सकता है। इंसान तुम मन को संकल्पित करके क्षमा से क्रोध को जीतो, भलाई से बुराई को जीतो, दरिद्रता को दान से जीतो, सत्य से असत्यवादी को जीतो, पाप को पुण्य से जीतो और समाज का प्रेरणा श्रोत बनो।


अंत में कहूँगा जीवन बहुत छोटा है, उसे अच्छे से जियो, प्रेम दुर्लभ है, उसे पकड़ कर रखो। क्रोध बहुत खराब है, उसे दबा कर रखो। भय बहुत भयानक है, उसका सामना करो। स्मृतियां बहुत सुखद हैं, उन्हें संजो कर रखो।अगर आपके पास मन की शांति है तो समझ लेना इस दुनिया में आपसे अधिक भाग्यशाली कोई नहीं है।