मनीषा के कातिलों को फांसी‌ आम अवाम की आवाज -कवि डा. अशोक अग्रहरि


प्रतापगढ़, शिवम पंडित। यूपी के हाथरस में मनबढ़ और बेखौफ़ दरिन्दों द्वारा एक और बेबस, लाचार बेटी के साथ बलपूर्वक बलात्कार ही नहीं बल्कि क्रूरता की पराकाष्ठा पार कर अंग भंग कर निर्मम हत्या से आज हर बेटी वाला बाप ही नहीं आम अवाम भी भारी आक्रोश से भर उठा है, आखिर इस तरह मजबूर बेटियों के अस्मत से बेरहमी से खिलवाड़ और कत्ल की वारदात को कब तक अन्जाम दिया जाता रहेगा, यह मौजूदा सवाल एक बार फिर हर आदमी के जेहन में उठ खड़ा हुआ है, क्या इसी तरह सरकार द्वारा दिये गये नारे बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ की सार्थकता सिद्ध होगी, ऐसे खौफनाक मन्जर देख परिजनों पर मुसीबत का पहाड़ और आम लोगों का सरकार के इकबाल से एतबार टूटा, इससे भी ज्यादा चिन्ताजनक बात तो ये है कि जैसा समाचार चैनल के वीडियो क्लिप सोशल मीडिया पर दिख रहे हैं कि पुलिस विभाग का अमला भारी संख्या में अभागन मृत बेटी की लाश आनन फानन में बिना परिजनों को दिखाये या विश्वास में लिये निर्जन स्थल पर जला देती है, परिवार के लोग विलखते हैं, निर्भीक, निष्पक्ष तथा निर्पेक्ष पत्रकार तथा अन्य इलेक्ट्रॉनिक मीडिया कर्मी लाश दिखाने की पुरजोर मांग मौके पर डटी पुलिस टोली से करती और पुलिस कर्मियों द्वारा इनकार करते दिखाया जा रहा है और वह भी रात के ढाई बजे, पूरे मामले को संदेहास्पद ही नहीं बल्कि पुलिस सबूतों को दफन कर सच्चाई को दबाने और लीपापोती का ताना बाना बुनने का भान कराने लगा है और दिवंगत बेटी के परिजनों को सही सही न्याय मिल पाने पर प्रश्नचिन्ह लगाने लगा है, जबकि ऐसे मामले में द्रुत गति से दरिन्दों की गिरफ्तारी, पीड़िता के सुपर मेडिकल फेसलिटी युक्त हास्पिटल में इलाज और परिवार को सुरक्षा, संरक्षण देना राजधर्म ही नहीं न्याय का तकाजा, समय की मांग और आम अवाम की मन्शा भी थी, काश कि ऐसा होता, जिससे रामराज के स्थापना का सपना तो साकार होता ही, कानून का राज होने का सुखद एहसास भी होता, जो कि लोकतन्त्र का सिरमौर है, सरकार की कथनी करनी में अन्तर भी प्रतीत होता, शासन और प्रशासन के लोगों में अगर थोड़ी भी संवेदना बची हो तो तत्काल सुनिश्चित समय सीमा में द्रुति गति से जांच, सुनवाई और दुर्दान्त कातिलों को फांसी के फन्दे तक पहुंचा दिन ब दिन रसातल को जा रही कानून व्यवस्था और सरकार की मन्शा पर खड़े हो रहे सवाल पर अविलम्ब विराम लगायें, जिससे विपक्ष भी इसे मुद्दा बना अपनी राजनीति की रोटी न सेंक सके।